पथिकचला
दिन ढला,
पथिक चला,
कही गिला,
कही भला !.......................
ये सितारे,
ये नजारे,
ये किनारे,
कदम हारे,
फिर बढ़ चला !..................
हवा चलना,
नीर बहना,
पात हिलना,
कुसुम खिलना,
छोड़ वक़्त चला !........................
मुकाम कहाँ,
मंजिल यहाँ,
सुबह कहाँ,
ये चक्र चला !....................
कहीं भूल,
कहीं फूल,
कहीं शूल,
कहीं उसूल,
हैं साथ चला !...................
कहीं तन्हाई,
कहीं रुसबाई ,
कहीं ‘मिलन’
कहीं जुदाई,
बस भुला चला !
रचयिता: गिरधारीलाल दुआ “मिलन” |
25/86 लक्कड़ खाना के पास टीकमगढ (म.प्र.) 07683-244121
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